कोई बता सकता है कि
स्वतंत्रता क्या है??
कोई कहता है-आज़ादी!!
लेकिन आज़ादी किस बात की?
मानती हूँ कि हमें विदेश
जाने की,खाने-पीने की,
रहने की,बात करने की
आज़ादी है!!लेकिन क्या
सचमें यह आज़ादी है??
दिन-ब-दिन सामान के
बढ़ते दामों को देखकर,
दुनिया भरमें भ्रष्टाचार
का फैलाव देखकर,
नौकरी पाने के लिए
पूँजिपतियों के आगे खुककर,
केवल उनकी बातों में
“हाँ” मिलाकर,
क्या यही आज़ादी है?
मानती हूँ कि बाँसों की बौछारें,
गालियों की बरसात नहीं होती है…
पर अप्रत्यक्ष रूप से हम
इन सबको सह रहे हैं…
सरकारी नौकरी अगर मिली
तो हमें डबाया जाता है….क्यों?
इसी डर से कि कहीं
हाथ से नौकरी न गँवा बैठे!
आखिर कब-तक हम
ऐसे डबे हुए होंगे?
मैं पूछती हूँ कि आज़ादी
मिली भी तो किस बात की?
इन सब को अगर सहना आज़ादी
है,तो नहीं चाहिए मुझे
ऐसी आज़ादी!!!!!!
क्या फ़ायदा इस “आज़ादी” का
जबकि हम अभी-भी
“ग़ुलाम ” है?
lovena
Mar 21, 2012 @ 15:44:23
स्वतन्त्र मात्र बुद्धि होती…कही भी जा सकती बिना बाधा के..काव्य भी शब्दों से बनधा….a good sense of writing..wonderful lines..keep the spirit 🙂