रोज़ करते हैं ईश्वर की पूजा
पान-फूल,फल चढ़ाकर
फिर जाकर माँगते हैं अपने
मन की मुराद को
लेकिन अगर बैठकर सोचें
तो देखते हैं कि ये सारा
संसार ईश्वर की देन है
फूल,फल सब उन्हीं की हैं
फिर हम उन्हीं की चीज़ों
को उन्हीं को क्यों चढ़ाते हैं?
क्या इन सबके बिना
पूजा नहीं हो सकती?
क्या बैठे-बैठे घर में,
ईश्वर से कुछ माँग लिया,
तो मन की मुराद पूरी नहीं होती?
अरे!वे लोग भी तो पूजा करते हैं
जिनके मन में खोट या चोरी होती है
पूजा करने के लिए सिर्फ़
हमारा मन साफ़ होना चाहिए
तो फिर ये सब दिखावा क्यों?